रिश्तों में स्नेह
गार्ड बिल्डिंग को ताला लगाकर जा रहा था
मैंने पूछा, क्या हुआ बाबा, सब कहां गए?
कोई नयी बीमारी चली है,
घर से ही काम कर सकते हैं
बच्चे भी स्कूल नही जा सकते
बोलते हैं घर पे रहो,
तो सब शहर छोड़ अपने गांव गए हैं।
मैने कहा, फिर तो ये अच्छी बात है
बीमारी के बहाने सब साथ में थोड़ा वक़्त बिता लेंगे
अपनों का प्यार ही तो काम आता है ऐसे वक़्त में।
गार्ड बोला, दीदी, क्या अच्छी बात है?
परसों सब्जी वाले के ठेले पे
एक बीबी जी भैया से बोल रही थीं
तुम्हारे घर चलते हैं।
भैया थोड़े हैरान हो बोले, तुम ठीक हो?
पहले तो गांव के नाम से ही परेशान हो जाती थी।
बीबी जी बोली, कुछ महीनों का बिजली का बिल बचेगा
खाने पीने का खर्चा अलग
यहां रहे तो मेरा सारा दिन रसोई में निकल जायेगा
बच्चे अलग से परेशान करेंगे
वहां गांव में खुली हवा होगी
बड़ा आंगन भी है, अच्छे से खेल लेंगे
अम्मा बाउजी का भी मन लग जाएगा।
अब इसमें प्यार तो कहीं नहीं है ना दीदी?
सब ज़रूरतों के रिश्ते हैं,
आपसी स्नेह तो रिश्तों से कब का गायब हो गया है।