.. उम्मीद का दामन !!!
सूखा पड़ने को है
बंजर हो रही है ज़मीन
पर मन, बारिश की
उम्मीद का दामन छोड़ नहीं रहा।
पतझड़ में कहां खिलते हैं फूल
कहां बहारें दस्तक देती हैं
पर मन, सूखे पेड़ों से खुशबू की
उम्मीद का दामन छोड़ नहीं रहा।
अंधेरों में गुम हो रहे हैं रास्ते
चलते चलते राही, थक से गए हैं
पर मन, उजाले की
उम्मीद का दामन छोड़ नहीं रहा।
चले तो थे कारवां लेकर
अधर में अब अकेले हैं
पर मन, हमराही की
उम्मीद का दामन छोड़ नहीं रहा।
कहते हैं उमीद पे दुनियां कायम है
पर हकीकत क्या है?
ज़िद है मन की?
या
ताकत है उमीद की?
के मन, लुटने के बाद भी
उम्मीद का दामन छोड़ नहीं रहा ।