ना जाने क्यूं सब परेशान हैं?
वो झूला फिर से बड़ा व्यस्त सा हो गया है
धूल जमी सी थी, पर आज कहीं दिखाई नहीं दी है।
पहले आधी उम्र मकान बनाते बनाते निकल गई,
फिर थोड़ी मकान को घर बनाने में
आज इतना वक़्त मिला है, हर ईंट अपनी कहानी सुना रही है
बच्चे बड़े हुए तो सब को अपना अपना कमरा चाहिए था
ऊपर के कमरे उन्हीं की जिद्द से बनवाए थे
वो पंखा हमने तब बदला था
वो अलमारी तब आयी थी
आंगन में आम का पेड़ तब लगाया था
बहू ने पहली बार खाने में वो बनाया था
ना जाने इतनी बातें कहां छिप गई थी यादों के कोनो में?
बच्चे भी अपनी अपनी कहानियां सुना रहे हैं
बचपन में आंगन के खेल,
बगीचे में बैठ घंटो तक गप्पे लड़ाते हैं
बिटिया अपने घर है, उसकी कमी अब ज़ादा खलती है
बेटा भी कहता है, बेहन होती तो यह करती वो करती।
अब डायनिंग टेबल पर बीवी को चिल्लाना नहीं पड़ता
बच्चो खाना खा लो, खाना ठंडा हो रहा है,
सब इस ताक में रहते हैं, कब खाने को मिलेगा।
ना जाने क्यूं सब परेशान हैं?
अपने घरोंदे में ,अपनी यादों के झूलों में
दफ्तर से घर, घर से दफ्तर
इन दो रास्तों के सफ़र में यह कुटिया कुछ कहती रही होगी
बीवी ने भी कुछ कहना चाहा होगा
फिर थक गए हैं, चलो किसी दिन और सही, सोच चुप रह गए होगी।
लड़के ने कहा, बाबा थोड़े दिन हम रसोई का काम करके देखते हैं
खयाल अच्छा लगा
बस सुबह ही आंख नहीं खुली
बीवी और बहू दोनों हंस दी,
बोली रहने दो, जिसका काम उसी को साझे
हां भई, तुम ही बनाओ, सुबह का नाश्ता
रात का हम बाप बेटा बनादेंगे, केहके बात दी निपटा।
ना जाने क्यूं सब परेशान हैं?
अपने घरोंदे में ,अपनी यादों के झूलों में
आज कुछ पढ़ने का मन कर रहा है,
हस्ते हुए बीवी बोली, धूल ने तुमसे ज़्यादा वक़्त बिताया है तुम्हारी किताबों के साथ,
अब थोड़ा आराम उसे भी करने दो
किताबों की अलमारी क्या खोली, बस यादों का जैसे समंदर सामने था
बीवी बड़ा अच्छा लिखती थी,
अब क्यूं छोड़ दिया, बोली कहां छोड़ा?
आज भी लिखती हूं, दोपहर में बहू और मैं यही तो करती हैं
वो मेरी कहानियां सुनती है, अपनी टि्पणियां देती है
अब तो उसने भी लिखना शुरू कर दिया है
अच्छा? हैरान था मैं, शायद इसीलिए ज़िन्दगी ने यह मौका दिया है
चलो अब तुम दोनों शाम को हमें सुना दिया करना, क्या खयाल है?
मुंह बनाकर बीवी उठी, बोली ना बाबा ना
यह लॉकडाउन तो कुछ महीनों की बात है
फिर आप अपनी बड़ी सी ज़िन्दगी में व्यस्त हो जाओगे
और हम सास बहू अपनी छोटी सी ज़िन्दगी में रह जाएंगी
इसलिए हमारी दुनिया को ना हिलाओ
दंग रह गया उसकी बात सुनकर
एक ही छत के नीचे कब इतनी अलग अलग दुनिया बन गई।
पर अभी भी यही सोचता हूं, ना जाने क्यूं सब परेशान हैं?
अपने घरोंदे में ,अपनी यादों के झूलों में।